कुछ साल पहले जब मैं शिफ्ट हुआ, तब मुझे अपने घर के पास की कम्युनिटी लाइब्रेरी के बारे में पता नहीं था। मेरे एक दोस्त ने मुझे लाइब्रेरी के बारे में बताया और एक दिन हम वहाँ पहुंच गए- एक सर कोई कहानी सुना रहें थे जो सब दिलचस्पी के साथ सुन रहे थें। तो मैं भी बैठ गया कहानियाँ सुनने। बाद मे मुझे पता चला के किताबें घर भी ले जा सकते है। मुझे मेम्बरशिप लेनी थी, जो बिलकुल फ्री थी। बिना किसी ID प्रूफ या झंझट के मुझे मेम्बरशिप मिल गयी!
फिर एक दिन मैंने सुना की शनिवार को लाइब्रेरी मे किताबें रिपेयर करने का काम होता है। मेरा भी मन हुआ की मैं इस काम से जुड़ूं, तो एक शनिवार मैं लाइब्रेरी पहुंचा। देखा कुछ बड़े और कुछ बच्चे साथ मिलकर काम कर रहे थे। मैंने मैंम से बात की और धीरे धीरे मैं भी इस ग्रुप में शामिल हुआ। यह थी हमारी स्टूडेंट कौंसिल और ऐसे हुई मेरी इस ग्रुप में शुरुवात!
इस ग्रुप में जुड़ने के बाद मैंने काफी नयी चीज़ें सीखीं - जैसे कैटलॉगिंग, सर्कुलेशन, सभी का प्यार से स्वागत करना। स्टूडेंट कौंसिल में मुझे दोस्तों का एक नया ग्रुप भी मिला। यह एक ऐसा प्यार भरा ग्रुप है जहा हम अपने अलग-अलग विचार एक दूसरे के साथ बेझिजक बाँट सकते है। स्टूडेंट कौंसिल में हुए डिसकशंस का मेरी सोच और मेरी ज़िन्दगी पर बहुत अच्छा इफ़ेक्ट हुआ है।
हमारी स्टूडेंट कौंसिल और लाइब्रेरी के डिसकशंस में कई बार ऐसे सवाल आ जाते है जिस पर सबके मत अलग होते है। फिर हम उस बात पर बहुत चर्चा करते है, जब तक कोई विचार या सोच हम पूरी तरह से समझ न लें। चाहे फिर हम उससे सहमत हों या नहीं, हमे उस पर हर तरफ से सोचना है। हम डिसिशन चाहे जो भी लें, उस पर बात रखने की फ्रीडम सबको है।
हमारी स्टूडेंट कौंसिल को भी कई डिसिशन लेने पड़ते हैं। कोई भी डिसिशन लेने से पहले हम सोचते हैं के इस डिसिशन का हमारे मेंबर्स पर क्या असर होगा। क्यूंकि हमारा मानना है के हमारे लाइब्रेरी के मेंबर्स हमारे लिए सबसे ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है, हमें उन्हें प्रायोरिटी देनी चाहिये। उदहारण के तौर पर, अब हम जब लाइब्रेरी फिर से खोलने के बारें में सोचते हैं तो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है यह सोचना कि मेंबर्स की सेफ्टी का ख्याल कैसे रखा जाए और हमारे सदस्य क्या चाहेंगे।
इस पान्डेमिक की वजह से कुछ महीनो से लाइब्रेरी बंद है। और इस लॉकडाउन में मैं स्टूडेंट कौंसिल, हमारे मेंबर्स, वालंटियर्स, सबको बहुत ज़्यादा मिस कर रहा हूँ ! ऐसे लगता है की बहुत सी चीज़ें छूट सी गयीं हो ! पर हम ऑनलाइन तो साथ साथ हैं। जो कहानियां हम मेंबर्स को लाइब्रेरी में सुनाते थे, वही अब हम 'दुनिया सबकी' के ज़रिये ऑनलाइन सुनाते है।
ऑनलाइन रीड-अलॉउडस (read-alouds ) कैसे करना है, यह सीखने के लिए दी गयी ट्रेनिंग भी मज़ेदार रही - वह भी Zoom पर। पहले तो मैंने सोचा की मैं घर से रीड-अलॉउडस करूंगा कैसे, मेरे पास तो किताबें है ही नहीं! फिर मुझे स्टोरीवीवर के बारें मैं बताया गया और मैं वहा से किताबें चुन कर X-रिकॉर्डर के ज़रिये वीडियो रीड-अलॉउडस बनाने लगा। हाँ पर मेंबर्स को लाइब्रेरी में कहानी सुनाने में और ऑनलाइन रीड-अलॉउडस में फर्क तो है!
जब मैं लाइब्रेरी में कहानी सुनाता हूँ तो मेंबर्स के एक्सप्रेशंस से पता चलता है की उन्हें कहानी में इंटरेस्ट हो रहा है की नही। उनके ओपिनियन सुनने मिलते हैं। कभी कभी ऐसे भी होता है की कहानी में छुपा हुआ कोई और मतलब सामने आता है। कई बार मेंबर्स खुद बुक चुनते है और कहते है की इसकी रीड-अलाउड सुनाये। वह मोमेंट बहुत स्पेशल होता है।
ऑनलाइन रीड-अलॉउडस करना अभी के लिए ज़रूरी है क्यूंकि इस से हम लाइब्रेरी के मैम्बर्स से जुड़े रहते है। पर उनमे वह मज़ा नहीं जो लाइब्रेरी में बैठ कर कहानी सुनाने में है। पर ऑनलाइन रीड-अलॉउडस करने से मेरा कॉन्फिडेंस ज़रूर बढ़ा है। अगर रीड-अलॉउडस में कुछ गलत हुआ तो मैं रिटेक कर सकता हूँ, पर मैं मेंबर्स के रिएक्शन बहुत मिस करता हूँ।
इस लिए मैं चाहता हूँ की लाइब्रेरी जल्दी खुले और मैं मेरे स्टूडेंट कौंसिल के गैंग से मिल पाऊ। अभी सभी गैंग थोड़ी बिखरी पड़ी है। मैं हमारे लाईब्ररियंस और वालंटियर्स से मिलने के लिए भी एक्ससाइटेड हूँ क्यूंकि वह हमे खूब मोटीवेट करते है। बस एक बार हम सब वापस मिल जाये तो हम हमारे सभी मेंबर्स को भी वापस ले आएंगे ! मैं उस समय का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ। क्योंकि मैं अपनी "दूसरी फैमिली" को मिस कर रहा हूँ।
Interviewed by Student Council member Simpy Sharma.
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