चीज़ो को ऑनलाइन करना क्या उन लोगो का अधिकार छीनना हैं जो डिजिटली साक्षर नही हैं और जिनके पास साधन नही हैं? कॉविड-19 के दौरान जहाँ सारी चीज़े - पढ़ाई से लेकर काम तक सब ऑनलाइन हो गयी है! क्या भारत जैसे देश में सभी चीज़ो को ऑनलाइन करना सही हैं? क्या सच में भारत के सभी लोग इतने काबिल,कुशल और समृद्ध है की वो ऑनलाइन चीज़े कर पाएँ?
“कॉविड-19 के दौरान सारी चीज़े - पढ़ाई से लेकर काम तक ऑनलाइन हो गयी है!” यह सुनने में तो बहुत अच्छा है मगर इसका सच क्या है? क्या जो दिख रहा है वही सच है? क्या सच में देश के सभी बच्चे ऑनलाइन शिक्षा, ऑनलाइन बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग या किसी स्कीम के लिए ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन का लाभ उठा पा रहे है ?
भारत जैसे विकासशील देश में जिसकी आबादी कुल 135 करोड़ है, जिस देश के सभी नागरिक शीक्षित तो छोड़ साक्षर भी नही हैं, उस देश में चीज़ो को ऑनलाइन करना कहाँ तक सही है?
भारत में साक्षरता दर सर्वे के अनुसार, देश की कुल साक्षरता (India overall literacy rate) 77.7 फीसदी है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में यह 73.5 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 87.7 फीसदी है। पुरुषों के मामले में देश की साक्षरता दर 84.7 फीसदी और महिलाओं में 70.3 फीसदी है!
भारत जैसे देश जहा साक्षरता दर इतनी कम है, यहाँ डिजिटल साक्षरता कितना कम होगा?
लगभग 40% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जी रही है, निरक्षरता दर 25-30% से अधिक है और भारत की 90% से अधिक आबादी के बीच डिजिटल साक्षरता लगभग ना के बराबर है।
ऑनलाइन तकनीकी है क्या?
ऑनलाइन तकनीकी में आप घर बैठे-बैठे इंटरनेट व अन्य संचार उपकरणों के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा, ऑनलाइन बैंकिंग ,ऑनलाइन शॉपिंग, किसी स्कीम के लिए ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
कई सर्वे और न्यूज़ आर्टिकल के अनुसार यह माना गया है की भारत इस काबिल नही है की वो सभी चीज़ो को ऑनलाइन कर सके.भारत में कई गाँव ऐसे हैं जहाँ आज भी बिजली नही आती, जहाँ आज भी सभी लोग खाना बनाने के लिए लकड़ी का ईस्तमाल करते हैं।
ऐसे गाँव में एल. पी. जी गैस पहुँचाना मुस्किल हैं तो वहा इंटरनेट कैसे आएगा!
चीज़ें ऑनलाइन करने से कुछ लोगो के लिए जीना आसान हो गया है, वही बहुत लोगो के लिए कठिनाई आ गयी हैं जिनके पास फोन नही है, इंटरनेट नही जिससे वो ऑनलाइन चीज़े कर पाएँगे।
जैसे चीज़ें ऑनलाइन होती जा रही है, वहि फोन्स कि मांग बढ़ती जा रही हैं!
मजदूर जो महीने में सिर्फ़ 5000 कमाता है वो भी अपने बच्चे कि पढ़ाई के लिए फोन लेने पर मजबूर है! मगर वो फोन नही ले पाते हैं; क्यूकी वो इस काबिल नही है। इस कारण से उसके बच्चो को पढ़ाई छोड़नी पड़ती हैं!
देश में कई ऐसे बच्चे हैं जिन्हे ऑनलाइन शिक्षा की वजह से पढ़ाई छोड़नी पड़ी और काम करने पर मजबूर होना पड़ रहा हैं, जिससे उनका शिक्षा का अधिकार (Article 21 A : Right to Education) का हनन हो रहा हैं।
किसान को भी अगर किसान स्कीम का लाभ उठाना है तो उन्हे ऑनलाइन फॉर्म जमा करना होता है, अगर एक मजदूर को करोना वॅक्सीन लगवाना है तो उन्हे ऑनलाइन रिजिस्टर करना होगा। तो जिन्हे ऑनलाइन चीज़ो का ज्ञान नही है उन्हे अपना हक़ छोड़ना पड़ता हैं।
चीज़ो को ऑनलाइन करना बस लोगो से उनका हक़, अधिकार और अवसर छिनना है। जिन बच्चो के पास फोन या इंटरनेट नही है उनसे उनके पढ़ने का हक़ छीना जा रहा है या उनके साथ भेदभाव हो रहा है। महाविधायलयों में बच्चो का ऑनलाइन एग्ज़ॅम लेना उन बच्चो के साथ नाइंसाफी हैं जिनके पास फोन, शांत कमरा और इंटरनेट नही हैं!
चीज़ो को ऑनलाइन करने से बस उन ग़रीबो से उनका हक़ छीनना है जिनके पास फोन, इंटरनेट या कोई और अन्य साधन नही हैं या उसका इस्तेमाल करना नही आता।
चीज़ो को ऑनलाइन करने का मतलब है ताक़त को कुछ ही लोगो के हाथ में पहुचना जो पहले से ही काफ़ी समृद्ध, काबिल और कुशल हैं। और जिन्हे इंटरनेट का इस्तेमाल करना नहीं आता हैं, उन्हे दूसरो पर निर्भर होना पड़ता हैं, या अपना हक़ खोना पड़ता है।
हमारा देश अभी इस लायक नही है की सभी चीज़ो को ऑनलाइन किया जाए या शायद किसी ने कोशिश ही नही की कि हमारा देश उस काबिल बन सके। सभी सिर्फ़ अपनी जेब भरने में लगे हैं। उन्होने कभी उन ग़रीबो या उन ग्रामीण लोगो के बारे में सोचा ही नही जिनके पास आज भी जीने के लिए जो ज़रूरी चीज़े चाहिए, वो है ही नही! इंटरनेट और चीज़ो को ऑनलाइन करना तो दूर की बात हैं!
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